मृदा शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द सोलम (Solum) से हुई है | जिसका अर्थ है फर्श (floor) | मृदा, पृथ्वी को एक पतले आवरण में ढके रहती है तथा जल और वायु की उपयुक्त मात्रा के साथ मिलकर पौधों को जीवन प्रदान करती है | भारत में सबसे अधिक (43.4%) भूभाग पर जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है और अन्य मिट्टियों में काली मिट्टी, लाल मिट्टी और लैटराइट मिट्टी पायी जाती है |
भारत में पायी जाने वाली प्रमुख मृदाएँ इस प्रकार हैं :
1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil): इस मिट्टी का विस्तार लगभग 15 लाख वर्ग किमी. है| भारत में सबसे अधिक (43.4%) भूभाग पर जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है | यह उत्तर भारत के मैदानों तथा दक्षिण भारत के तटीय मैदानों की मिट्टी है जो मुख्यतः नदियों द्वारा वाहित होती है | इस मृदा में पोटाश व चूना प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तथा फास्फोरस, नाइट्रोजन एवं जीवांश की कमी होती है | यह मिट्टी गन्ना, गेहूं, धान, तिलहन, दलहन आदि की खेती के लिए बहुत ही उपजाऊ होती है |
2. लाल मिट्टी (Red Soil): इस मिट्टी का विस्तार मुख्य तौर से तमिलनाडु, कर्नाटक, दक्षिण पूर्वी महाराष्ट्र, ओडिशा, पूर्वी मध्य प्रदेश, बुन्देलखंड के कुछ भागों में तथा छोटा नागपुर में है | इस मृदा का विस्तार देश के 18.6% भूभाग पर है | इस प्रकार यह देश में पायी जाने वाली दूसरी सबसे अधिक विस्तृत क्षेत्र वाली मृदा है | इसका निर्माण ग्रेनाइट, नीस और सिस्ट जैसे खनिजों से होता है | इसमें लोहे का अंश सबसे अधिक होता है | इसमें पैदा की जाने वाली फसलें तम्बाकू, बाजरा, तिलहन और गेहूं हैं |
3. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil): ये मृदाएँ शुष्क तथा आर्द्र शुष्क प्रदेशों में पायी जाती हैं इस प्रकार की मृदाएँ मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी पंजाब के भागों में पायीं जातीं हैं | इस प्रकार यह मिट्टी 2.85 लाख किमी2 भूभाग में फैली है| पानी की कमी और अधिक तापमान के कारण ये मृदाएँ टूटकर बालू के कणों में विखंडित हो जातीं हैं | इसमें फास्फोरस अधिक मात्रा में पाया जाता है लेकिन इनमे जीवांश ईधन और नाइट्रोजन की कमी होती है |
4. पर्वतीय मृदाएँ (Hill Soil): इसका विस्तार भारत में लगभग 3 लाख वर्ग किमी में पाया जाता है | इसे वनीय मृदा भी कहते हैं | इस प्रकार की मिट्टियाँ कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली हई है | इसमें जीवांश अधिक मात्रा में पाये जाते हैं लेकिन फास्फोरस, पोटाश, चूना की कमी होती है | यह मृदा सेव, नाशपाती और अलूचा आदि के लिए अच्छी मानी जाती है |
5. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil): ये मृदाएँ शुष्क तथा आर्द्र शुष्क प्रदेशों में पायी जाती हैं इस प्रकार की मृदाएँ मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी पंजाब के भागों में पायीं जातीं हैं | इस प्रकार यह मिट्टी 2.85 लाख किमी2 भूभाग में फैली है| पानी की कमी और अधिक तापमान के कारण ये मृदाएँ टूटकर बालू के कणों में विखंडित हो जातीं हैं | इसमें फास्फोरस अधिक मात्रा में पाया जाता है लेकिन इनमे जीवांश ईधन और नाइट्रोजन की कमी होती है |
6. पर्वतीय मृदाएँ (Hill Soil): इसका विस्तार भारत में लगभग 3 लाख वर्ग किमी में पाया जाता है | इसे वनीय मृदा भी कहते हैं | इस प्रकार की मिट्टियाँ कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली हई है | इसमें जीवांश अधिक मात्रा में पाये जाते हैं लेकिन फास्फोरस, पोटाश, चूना की कमी होती है | यह मृदा सेव, नाशपाती और अलूचा आदि के लिए अच्छी मानी जाती है |
भारत में पायी जाने वाली प्रमुख मृदाएँ इस प्रकार हैं :
1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil): इस मिट्टी का विस्तार लगभग 15 लाख वर्ग किमी. है| भारत में सबसे अधिक (43.4%) भूभाग पर जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है | यह उत्तर भारत के मैदानों तथा दक्षिण भारत के तटीय मैदानों की मिट्टी है जो मुख्यतः नदियों द्वारा वाहित होती है | इस मृदा में पोटाश व चूना प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तथा फास्फोरस, नाइट्रोजन एवं जीवांश की कमी होती है | यह मिट्टी गन्ना, गेहूं, धान, तिलहन, दलहन आदि की खेती के लिए बहुत ही उपजाऊ होती है |
2. लाल मिट्टी (Red Soil): इस मिट्टी का विस्तार मुख्य तौर से तमिलनाडु, कर्नाटक, दक्षिण पूर्वी महाराष्ट्र, ओडिशा, पूर्वी मध्य प्रदेश, बुन्देलखंड के कुछ भागों में तथा छोटा नागपुर में है | इस मृदा का विस्तार देश के 18.6% भूभाग पर है | इस प्रकार यह देश में पायी जाने वाली दूसरी सबसे अधिक विस्तृत क्षेत्र वाली मृदा है | इसका निर्माण ग्रेनाइट, नीस और सिस्ट जैसे खनिजों से होता है | इसमें लोहे का अंश सबसे अधिक होता है | इसमें पैदा की जाने वाली फसलें तम्बाकू, बाजरा, तिलहन और गेहूं हैं |
3. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil): ये मृदाएँ शुष्क तथा आर्द्र शुष्क प्रदेशों में पायी जाती हैं इस प्रकार की मृदाएँ मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी पंजाब के भागों में पायीं जातीं हैं | इस प्रकार यह मिट्टी 2.85 लाख किमी2 भूभाग में फैली है| पानी की कमी और अधिक तापमान के कारण ये मृदाएँ टूटकर बालू के कणों में विखंडित हो जातीं हैं | इसमें फास्फोरस अधिक मात्रा में पाया जाता है लेकिन इनमे जीवांश ईधन और नाइट्रोजन की कमी होती है |
4. पर्वतीय मृदाएँ (Hill Soil): इसका विस्तार भारत में लगभग 3 लाख वर्ग किमी में पाया जाता है | इसे वनीय मृदा भी कहते हैं | इस प्रकार की मिट्टियाँ कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली हई है | इसमें जीवांश अधिक मात्रा में पाये जाते हैं लेकिन फास्फोरस, पोटाश, चूना की कमी होती है | यह मृदा सेव, नाशपाती और अलूचा आदि के लिए अच्छी मानी जाती है |
5. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil): ये मृदाएँ शुष्क तथा आर्द्र शुष्क प्रदेशों में पायी जाती हैं इस प्रकार की मृदाएँ मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी पंजाब के भागों में पायीं जातीं हैं | इस प्रकार यह मिट्टी 2.85 लाख किमी2 भूभाग में फैली है| पानी की कमी और अधिक तापमान के कारण ये मृदाएँ टूटकर बालू के कणों में विखंडित हो जातीं हैं | इसमें फास्फोरस अधिक मात्रा में पाया जाता है लेकिन इनमे जीवांश ईधन और नाइट्रोजन की कमी होती है |
6. पर्वतीय मृदाएँ (Hill Soil): इसका विस्तार भारत में लगभग 3 लाख वर्ग किमी में पाया जाता है | इसे वनीय मृदा भी कहते हैं | इस प्रकार की मिट्टियाँ कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली हई है | इसमें जीवांश अधिक मात्रा में पाये जाते हैं लेकिन फास्फोरस, पोटाश, चूना की कमी होती है | यह मृदा सेव, नाशपाती और अलूचा आदि के लिए अच्छी मानी जाती है |
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