Friday, September 20, 2019

Ctet and Uptet special question part -2

प्रश्‍न 1- बुद्धि का संज्ञानात्मक सिद्धान्त किसने दिया । 
उत्‍तर - जीनप्याजे ने । 


प्रश्‍न 2- बुद्धि का संवेगात्मक विकास का सिद्धान्त किसने दिया । 
उत्‍तर - गोलमैन ने । 


प्रश्‍न 3- बुद्धि का संरचना सिद्धान्त किसने दिया । 
उत्‍तर - आइजेन्क ने । 


प्रश्‍न 4- किशोर की सबसे नाजुक एवं संवेदनशील समस्‍या क्‍या होती है। 
उत्‍तर - यौन सम्‍बन्‍धी समस्‍या । 


प्रश्‍न 5- मानव विकास की किस अवस्‍था के बाद व्‍यक्ति परिपक्‍व हो जाता है। 
उत्‍तर - किशोरावस्‍था के बाद । 


प्रश्‍न 6- शिक्षण की विभिन्‍न विधियों के प्रयोग के लिए कौन सी अवस्‍था सर्वाधिक उपयुक्‍त्‍ा है। 
उत्‍तर - बाल्‍यावस्‍था । 


प्रश्‍न 7- मै कौन हूँ, मैं क्‍या हॅूं, आदि जैसी प्रबल भावनाऍ बालक के विकास की किस अवस्‍था की सूचक होती है। 
उत्‍तर - किशोरावस्‍था । 


प्रश्‍न 8- विकास कभी न समाप्‍त होने वाली प्रक्रिया है। यह विचार किस सिद्धान्‍त से सम्‍बन्धित है। 
उत्‍तर - निरन्‍तरता का सिद्धान्‍त । 


प्रश्‍न 9- शिक्षा मनोविज्ञान एक विज्ञान है। 
उत्‍तर - मानव व्‍यवहार का । 


प्रश्‍न 10- विकास प्राणी में प्रगतिशील परिवर्तन है जो निश्चित लक्ष्‍यों की ओर निरन्‍तर निर्देशित होता रहता है। यह कथन किसका है। 
उत्‍तर - ड्रेवर का । 


प्रश्‍न 11- सीखने का सिद्धान्त किसने दिया। 
उत्‍तर - थार्नडाइक ने ! 


प्रश्‍न 12- खेल पद्धत्ति के जनक कौन है। 
उत्‍तर - किल पैट्रिक ! 


प्रश्‍न 13- ह्यूरिस्टिक पद्धत्ति के जनक कौन है। 
उत्‍तर - आर्म स्ट्रांग ! 


प्रश्‍न 14- प्रोजेक्ट पद्धत्ति के जनक कौन है। 
उत्‍तर - जानडेवी । 


प्रश्‍न 15- अस्थाई मानव दांत कितने होते है। 
उत्‍तर - 20 । 


प्रश्‍न 16- शिशु के मस्तिष्क का वजन कितना होता है। 
उत्‍तर - लगभग 350 ग्राम । 


प्रश्‍न 17- मनुष्य के मस्तिष्क का वजन कितना होता है। 
उत्‍तर - लगभग 1400 ग्राम । 


प्रश्‍न 18- जीनप्याजे ने जिनेवा मे किसकी स्थापना की । 
उत्‍तर - लेवोरट्री स्कूल की स्थापना की जिसमें उन्होनें मनोविज्ञान के कई प्रयोग किये । 


प्रश्‍न 19- जीनप्याजे के द्वारा रचित पुस्तक का नाम क्या है। 
उत्‍तर - द लैंगुवेज एण्ड थाट ऑफ द चाइल्ड
यह पुस्तक उन्होनें 1923 में लिखी थी। 


प्रश्‍न 20- जीनप्याजे ने संज्ञानात्मक विकास को ध्यान में रखते हुये बालक की कितनी अवस्था बतलाई । 
उत्‍तर - जीनप्याजे ने संज्ञानात्मक विकास को ध्यान में रखते हुये बालक की 4 अवस्था बतलाई ।
1.संवेदी गत्यात्मक अवस्था (जन्म से 2 वर्ष तक)
2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (2 से 7 वर्ष तक)
3. ठोस/मूर्त संक्रियात्मतक अवस्था (7 से 11 वर्ष तक)
4. औपचारिक संक्रियात्मंक अवस्था (11 से 18 वर्ष तक) 


प्रश्‍न 21- बच्‍चों में बौद्धिक विकास की चार विशिष्‍ट अवस्‍थाओं की पहचान की गई । 
उत्‍तर - पियाजे द्वारा । 


प्रश्‍न 22- विकास कभी न समाप्‍त होने वाली प्रक्रिया है। यह विचार किससे संबंधित है। 
उत्‍तर - निरंतरता का सिद्धान्‍त । 


प्रश्‍न 23- प्राथमिक स्‍तर पर एक शिक्षक में निम्‍न में से किसे सबसे महत्‍वपूर्ण विशेषता मानना चाहिए। 
उत्‍तर - धैर्य और दृढ़ता । 


प्रश्‍न 24- उत्‍तरबाल्‍यवस्‍था में बालक भौतिक वस्‍तुओं के किस आवश्‍यक तत्‍व में परिवर्तन समझने लगते है। 
उत्‍तर - द्रव्‍यमान , संख्‍या और क्षेत्र । 


प्रश्‍न 25- दूसरे वर्ष में अंत तक शिशु का शब्‍द भंडार हो जाता है। 
उत्‍तर - 100 शब्‍द । 


प्रश्‍न 26- शर्म तथा गर्व जैसी भावना का विकास किस अवस्‍था में होता है। 
उत्‍तर - बालयवस्‍था । 


प्रश्‍न 27- मैक्‍डूगल के अनुसार मूलप्रवृति जिज्ञासा का संबंध कौन संवेग से है। 
उत्‍तर - आश्‍चर्य । 


प्रश्‍न 28- बाल्‍यावस्‍था अवस्‍था होती है। 
उत्‍तर - 12 वर्ष तक। 


प्रश्‍न 29- शारीरिक विकास का क्षेत्र है। 
उत्‍तर - स्‍नायुमंडल 


प्रश्‍न 30- विवेचना रहित विचार की अवस्‍था मानी गई है। 
उत्‍तर - 4 से 7 वर्ष । 


प्रश्‍न 31- बुद्धि का त्रिक - बिन्‍दु सिन्‍द्धान्‍त किसने दिया । 
उत्‍तर - स्‍टर्न वर्ग ने ।
इन्‍होंने बुद्धि को तीन भागों में बांटा ।
1. विशलेषणात्‍मक बुद्धि
2. व्‍यवहारिक बुद्धि
3. सृजानात्‍मक बुद्धि 


प्रश्‍न 32- जीनपियाजे के अनुसार बुद्धि क्‍या है। 
उत्‍तर - जीनपियाजे के अनुसार बुद्धि वातावरण के साथ अनुकूलन करने की प्रक्रिया है। 


प्रश्‍न 33- अल्‍फ्रेड बिने के अनुसार बुद्धि के प्रकार बताईये । 
उत्‍तर - अल्‍फ्रेड बिने के अनुसार बुद्धि चार शब्‍दों से मिलकर बनी है।
1. ज्ञान
2. अविष्‍कार
3. निर्देश
4. आलोचना 


प्रश्‍न 34- टर्मन के अनुसार बुद्धि की क्‍या परिभाषा है। 
उत्‍तर - टर्मन के अनुसार - बुद्धि अमूर्त विचारों के बारे में सोचने की योग्‍यता है। 


प्रश्‍न 35- स्‍टर्न के अनुसार बुद्धि की क्‍या परिभाषा है। 
उत्‍तर - स्‍टर्न के अनुसार - बुद्धि एक सामान्‍य योग्‍यता है। जिसके द्वरा व्‍यक्त्‍िा नई परिस्थितियों के साथ समायोजन करता है। 


प्रश्‍न 36- बकिन्घम के अनुसार बुद्धि की क्‍या परिभाषा है। 
उत्‍तर - बकिन्‍घम के अनुसार सीखने की शक्ति ही बुद्धि है। 


प्रश्‍न 37- वैसलर के अनुसार बुद्धि की क्‍या परिभाषा है। 
उत्‍तर - वैसलर के अनुसार बुद्धि किसी कार्य को करने की, तार्किक चिन्‍तन करने की, वातावरण के साथ समायोजन करने की सामूहिक योग्‍यता होती है। 


प्रश्‍न 38- सामन्‍यत: बुद्धि कितने प्रकार की है। 
उत्‍तर - सामान्‍यत: बुद्धि तीन प्रकार की होती है ।
1. अमूर्त बुद्धि
2. मूर्त बुद्धि (यांन्त्रिक बुद्धि)
3. सामाजिक बुद्धि 


प्रश्‍न 39- यांत्रिक बुद्धि या स्‍थूल बुद्धि किसे कहा जाता है । 
उत्‍तर - मूर्त बुद्धि को । 


प्रश्‍न 40- स्‍पीयर मैन के अनुसार बुद्धि की क्‍या परिभाषा है। 
उत्‍तर - स्‍पीयर मैन के अनुसार बुद्धि तार्किक चिन्‍तन करने की योग्‍यता है।


प्रश्‍न 41- बाल अपराध बनने के कारण क्या क्या है। 
उत्‍तर - 1. आनुवांशिंकता
2. व्याक्तिगत आवश्यकताओ की पूर्ति न होना
3. शारीरिक दोष – ऐसे बालक हीन भावना से ग्रसित होने के कारण अपराधी बन जाते है।
4. घर का वातावरण अशान्त होना।
5. कुसंगती के कारण
6. दादा दादी का अधिक लाड प्यार
7. स्तर हीन मनोरंजन
8. माता पिता का गरीब होना
9. पक्षपात पूर्ण व्यवहार
10. माता पिता का तलाक आदि 


प्रश्‍न 42- बाल अपराधियों के उपचार क्या क्या है। 
उत्‍तर - 1. मनोवैज्ञानिक विधि
2. समाजशास्त्रीय विधि
3. वैधानिक विधि 


प्रश्‍न 43- समस्याग्रस्त बालक कौन से होते है। 
उत्‍तर - वे बालक जिनके व्यवहार में ऐसी कोई असामान्य बात होती हैा जिसके कारण वे समस्याग्रस्त बालक बन जाते है। जैसे –
1. कक्षा में देर से आना
2. स्कूाल से भाग जाना
3. कक्षा में अधिक बाते करना
4. अधिक क्रियाशीलता होना
5. ग्रहकार्य करके न लाना
6. कक्षा में पढाई में ध्याान न लगाना 


प्रश्‍न 44- समस्याग्रस्तं बालकों की समस्या शिक्षक द्वारा कैसे दूर की जा सकती हैा 
उत्‍तर - 1. शिक्षक को चाहिए कि ऐसे बालकों को अलग-अलग बिठायें और सबसे आगे विठायें।
2. शिक्षक को स्वयं बालक की समस्या को कारणों का पता लगाना चाहिए और दूर करना चाहिए।
3. शिक्षकों को ऐसे बालकों के घर जाकर उनकी समस्या का पता लगाना चाहिए। 


प्रश्‍न 45- गिलफोर्ड ने सृजनशीलता के 4 तत्व कौन से बताये है। 
उत्‍तर - 1. लोचशीलता
2. मौलिकता
3. अपसारीशीलता
4. केन्द्रा विमुख 


प्रश्‍न 46- वैज्ञानिक गुड ने सृजनशीलता के कितने तत्व दिये। 
उत्‍तर - वैज्ञानिक गुड ने सृजनशीलता के पॉच तत्व दिये जो निम्न् है।
1. मौलिकता
2. अनुकूलता
3. विचारात्मलक
4. विचारों का सहचर्य
5. लोथ शील और विविध 


प्रश्‍न 47- सृजनात्मकता के प्रमुख तत्व कौन से है। 
उत्‍तर - 1. मौलिकता
2. नवीनता
3. लोचशीलता
4. विस्तातरण करेन की क्षमता
5. विभिन्नाता 


प्रश्‍न 48- सृजनशील बालकों की विशेषताऍ क्या क्या है। 
उत्‍तर - 1. सृजनशील बालक जिज्ञासु प्रवर्ति के होते है।
2. सृजनशील बालकों में उच्य् महत्वकांक्षा वाले होते है।
3. सृजनशील बालकों के विचार व्या‍पक होते है।
4. सृजनशील बालकों मे संवेदन शीलता अधिक पाई जाती है।
5. सृजनशील बालकों मे एकाग्रता पाई जाती है। 


प्रश्‍न 49- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है यह किसने कहा। 
उत्‍तर - अरस्तू ने ! 


प्रश्‍न 50- बालक के सामाजीकरण की पहली पाठशाला कौन सी होती है।
उत्‍तर - पहली - घर एवं परिवार
दूसरी - खेल का मैदान
तीसरी - स्कूल 

Tuesday, September 17, 2019

डॉ. जीन पियाजे के सम्पूर्ण अधिगम से संबंधित सिद्धांत

डॉ. जीन पियाजे ( 1896-1980 ) स्विस मनोवैज्ञानिक थे। वे मूल रूप से प्राणी शास्त्री थे, लेकिन उन्होंने मनोविज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए। इस कारण उन्हें मनोवैज्ञानिक के रूप में भी देखा जाता है। पियाजे ने फ्रांस के बिनेट (क्चद्बठ्ठद्गह्ल) के साथ मिलकर कई वर्षों तक इस क्षेत्र में काम किया।

बुद्धि के बारे में पहले तर्क यह था कि बुद्धि जन्मजात होती है। लेकिन पियाजे का तर्क है कि बुद्धि जन्मजात नहीं होती। बालक जैसे जैसे बड़ा होता जाता है वैसे वैसे आयु के साथ उसका कार्य क्षेत्र बढ़ता है। इसी से बुद्धि भी बढ़ती जाती है।
अधिगम का अर्थ और परिभाषा 
प्रारंभ में बच्चा केवल सरल संप्रत्यय ही सीखता है। अनुभव के साथ बुद्धि बढ़ती है और धीरे धीरे आयु बढऩे के साथ बालक कठिन संप्रत्यों को भी सीख लेता है। वातावरण एवं क्रियाओं का योगदान सीखने या अधिगम में महत्वपूर्ण होता है ।

पियाजे का तर्क है कि सीखना बौद्धिक प्रक्रिया है यात्रिक प्रक्रिया नहीं है। सीखना एक संप्रत्यय निर्माण करना होता है। निर्माण करने की यह प्रक्रिया सरल से कठिन की ओर चलती है । यानि बालक पहले सरल चीजें बाद में कठिन चीजें सीखते हैं।

बालक की सत्य के बारे में चिन्तन करने की जो शक्ति होती है वह परिपक्वता के स्तर और अनुभवों की अन्त: किया पर निर्भर करती है तथा इसी पर निर्धारित होता है। इसीलिए मनोवैज्ञानिकोंने इसे अन्त: क्रियावदी विचारधारा का नाम दिया है। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने इसे सम्प्रत्यय निर्माण का सिद्धांत भी कहा है।

Steps of Cognitive Development Theory | संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत के पद ( पियाजे )

स्वयं के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में पियाजे दो पदों का उपयोग करते हैं। संगठन और अनुकूलन। हालांकि इन पदों के अलावा भी पियाजे ने कुछ अन्य पदों का प्रयोग अपने संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में किया है।
(1) अनुकूलन ( Adaptation ) 
पियाजे के अनुसार बच्चों में अपने वातावरण के साथ समायोजन की प्रवृति जन्मजात होती है । बच्चे की इस प्रवृति को अनुकूलन कहा जाता है । पियाजे के अनुसार बालक अपने प्रारभिंक जीवन से ही अनुकूलन करने लगता है । जब कोई बच्चा वातावरण में किसी उद्दीपक परिस्थितियो के समाने होता है तो उस समय उसकी विभिन्न मानसिक क्रियाएं अलग अलग कार्य न करके एक साथ संगंठित होकर कर्या करती हंै  और ज्ञान अर्जित करती हैं। यही क्रिया हमेशा मानसिक स्तर पर चलती है। वातावरण के साथ मनुष्य का जो संबंध होता है उस संबंध को संगठन आन्तरिक रूप से प्रभावित करता है जबकि अनुकूलन बाहरी रूप से। पियाजे ने अनुकूलन की प्रक्रिया को अधिक महत्वपूर्ण माना है ।

पियाजे ने अनुकूलन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को दो उप -प्रक्रियाओं बांटा गया है।

आत्मसात्करण ( Assimilations )
समंजन ( Accommodation  )

(1) आत्मसात्करण ( Assimilations ) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बालक किसी समस्या का समाधान करने के लिए पहले सीखी हुई योजनाओं या मानसिक प्रक्रिमाओं का सहारा लेता है । यह एक जीव वैज्ञानिक प्रक्रिया है । आत्मसात्करण को हम इस उदाहरण के माध्यम से भी समझ सकते हैं कि जब हम भोजन करते हैं तो मूलरूप से भोजन हमारे भीतर नहीं रह पाता है बल्कि भोजन से बना हुआ रक्त हमारी मांसपेशियों में इस प्रकार समा जाता है कि जिससे हमारी मांसपेशियों की संरचना का आकार बदल जाता है । इससे यह बात स्पष्ट होती है कि आत्मसात्करण की प्रक्रिया से संरचनात्मक परिर्वतन होते हैं । यानि हम भोजन को आत्मसात करते हैं तो बाहर से दिखने वाला शरीर परिवर्तित होता है।

पियाजे के शब्दों में " नए अनुभव का आत्मसात्करण करने के लिए अनुभव के स्वरूप में परिवर्तन लना पड़ता है । जिससे वह पुराने अनुभव के साथ मिलकर संज्ञान के एक नए ढांचे का निर्माण करता है। इससे बालक के नए अनुभवों में परिर्वतन होते हैं ।

(2) समंजन ( Accommodation  ) एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूर्व में सीखी योजना या मानासिक प्रक्रियाओं से काम न चलने पर समंजन के लिए ही की जाती है । पियाजे कहते हैं कि बालक आत्मसात्करण और सामंजस्य की प्रक्रियाओ के बीच संतुलन कायम करता है । जब बच्चे के सामने कोई नई समस्या होती है, तो उसमें सांज्ञानात्मक असंतुलन उत्पन्न होता है। उस असंतुलन को दूर करने के लिए वह आत्मसात्करण या समंजन या दोनों प्रक्रियाओं को प्रारंभ करता है ।
समंजन को आत्मसात्करण की एक पूरक प्रकिया माना जाता है । बालक अपने वातावरण या परिवेश के साथ समायोजित होने के लिए आत्मसात् करण और समंजन का सहरा आवश्यकतानुसार लेते हैं ।

संज्ञानात्मक संरचना ( Cognitiive structure ) :-पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक संरचना से तात्पर्य बालक के मानसिक संगठन से है । अर्थात् बुद्धि में संलिप्त विभिन्न क्रियाएं जैसे प्रत्यक्षीकरण स्मृति, चिन्तन तथा तर्क इत्यादि ये सभी संगठित होकर कार्य करते हैं । वातावरण के साथ सर्मयाजन , संगठन का ही परिणाम है ।

मानसिक संक्रिया ( Mental operation ) :- बालक द्वारा समस्या समाधान के लिए किए जाने वाले चिन्तन को ही मानसिक संक्रिया कहते हैं ।

स्कीम्स (Schemes  ) :- यह बालक द्वारा समस्या समाधान के लिए किए गए चिन्तन का आभिव्यकत रूप होता । अर्थात् मानसिक संक्रियाओं का अभिव्यक्त रूप ही स्कीम्स होता है ।
स्कीमा ( Schema  ) :- एक ऐसी मानसिक संरचना जिसका सामान्यीकरण किया जा सके, स्कीमा होता है ।


संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ (  Stage of Cognitiive Development )

जीन पियाजे के अनुसार जैसे जैसे संज्ञानात्मक विकास होता है, वैसे वैसे अवस्थाएं भी परिवर्तित होती रहती हैं। किसी विशेष अवस्था में बालक के समस्त ज्ञान विचारों व्यवहारों के संगठन से एक सेट ( स्द्गह्ल ) यानि समुच्चय तैयार होता है, जिसे पियाजे स्कीमा कहता है । इन स्कीमा का विकास बालक के अनुभव व परिपक्वता पर निर्भर करता है । बालक के संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाए होती हैं।


  1. संवेदी पेशीय अवस्था या इन्द्रिय गतिक अवस्था ( Sensori motor stage )
  2. पूर्व संक्रिया अवस्था ( Pre – operational stage )
  3. मूर्त संक्रिया अवस्था (  Concrete operational stage )
  4. औपचारिक संक्रिया अवस्था ( Stage of Formal operation )


(1) संवेदी पेशीय अवस्था या इन्द्रिय गतिक अवस्था ( Sensori Motor Stage ) :- संज्ञानात्मक विकास की प्रथम अवस्था है। यह अवस्था जन्म से लेकर 2 वर्ष की अवस्था तक चलती है । जन्म के समय बालक केवल सरल क्रियाएं ही करता है । बच्चा इस अवस्था में ज्ञानेन्द्रियों की सहायता से वस्तुओं, ध्वनियों, रसों व गंध आदि का अनुभव करता है । इस सरल क्रियाओं को ही पियाजे सहज स्कीमा कहते हैं । इन्हीं अनुभूतियों की पुनरावृति के कारण बच्चा संज्ञानात्मक आत्मसात् न व समंजन की प्रक्रियाएं शुरू करता है । जब उसे परिवेश में उपस्थित उद्दीपकों को पाता चलता है , तो बच्चा अपनी इन्द्रियों द्वारा इनका प्राथमिक अनुभव करता है । पियाजे ने अपनी इस अवस्था को छ: उप अवस्थाओ में विभाजित करता है ।

(2) पूर्व संक्रिय अवस्था ( Pre Operation Stage ) :- पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की द्वितीय अवस्था पूर्व संक्रिय अवस्था है। जिसे वह बच्चे की 2 वर्ष से 7 वर्ष की अवस्था तक मानता है । इस अवस्था को वह 2 उप अवस्थाओं में विभाजित करता है । इस अवस्था में बच्चे में निम्न प्रकार की विशेषताएं पाई जाती हैं ।

1 बच्चा आने आस पास की वस्तुओं और प्राणियों व शब्दों में संबंध स्थापित करना सीख जाते हैं ।
2 बच्चे प्राय: खेल व अनुकरण द्वारा सीखते हैं।
3 पियाजे कहते हैं कि इस अवस्था में 4 वर्ष तक के  बच्चे निर्जीव क्स्तुओं को सजीव वस्तुओँ के रूप में समझते हैं।
4 बच्चे अपने विचार को सही मानते हैं  और समझते हैं कि सारी दुनिया उन्हीं के इर्द र्गिद है । इसे पियाजे के आत्मकेनिद्रकता (  Ego centerism  ) का नाम दिया है ।
5 बच्चे भाषा सीखने लगते हैं ।
6 बच्चे चिन्तन करना भी शुरू कर देते हैं ।
7 छ: वर्ष तक आते आते बच्चा मूर्त प्रत्ययों के साथ अमूर्त प्रत्ययों का भी निर्माण करने लगते हैं ।
7 वे रटना शुरू करते है । अर्थात् वे रटकर सीखते हैं न कि समझकार ।
8 इस अवस्था में बच्चा स्वार्थी नहीं होता।
9 धीरे धीरे वह प्रतीकों को ग्रहण करना सीखता है ।
10 इस अक्स्था में बालक कार्य और कारण के संबंध से अनजान होते हैं ।
11 मानासिक रूप से अभी अपरिपक्व होने के कारण वे समस्या समाधन के दौरान समस्या के केवल एक ही पक्ष को जान पाते हैं ।

(3) मूर्तसंक्रिया अवस्था ( Concerte Operation Stage ) :-
इस अवस्था की विशेषताओं का वर्णन पियाजे के अनुसार निम्न प्रकार से किया गया है ।
1 यह अवस्था 7 वर्ष से 11 वर्ष की अवस्था तक चलती है अथवा मानी जाती है ।
2 इस अवस्था में बालक अधिक व्यवहारिक व यथार्थवादी होते हैं ।
3 तर्कशक्ति की क्षमता का विकास होना प्रारभ हो जाता है ।
4 अमूर्त समस्याओं का समाधान वे अभी भी ढूंढ़ पाते हैं ।
5 इस अवस्था में बच्चे वस्तुओं को उनके गुणों के आधार पर पहचाना शुरू कर देते हैं ।
6 चिन्तन में क्रमबद्धता का अभाव अभी भी होता हैं ।
7 इस अवस्था में बालकों में कुछ क्षमताएं विकासित हो जाती हैं। जैसे कंजर्वेशन अर्थात् जब कोई ज्ञान जो पदार्थ रूप मे बदल जाने के बाद भी मात्रा संख्या, भार और आयतन की द्वाष्टि से समान रह जाता है, उसे कंजर्वेशन कहते हैं ।
8 संख्या बोध अर्थात् गणित को जानना व वस्तुओं को निनना शुरू कर देते हैं ।
9 इसके अलावा क्रमानुसार व्यवस्था, वर्गीकरण करना और पारस्परिक संबंधों आदि को जानने लगते हैं ।

4 औपचारिक संक्रिया की आस्था (Stage of Formal Operational  ) :-
पियाजे के अनुसार, संज्ञानात्मक विकास की चतुर्थ व आन्तिम अक्स्था की विशेषताएं निम्न प्रकार है ।
1 बच्चा विसंगतियों को समझने की क्षमता रखता है ।
2 बच्चे में वास्तविक अनुभवों को काल्पनिक रूप या परिस्थतियों में प्रक्षेपित करने की क्षमता आ जाती है ।
3 बच्चा घटनाओं की परिकल्पाएं बनाने लगता है और इन्हें सत्यापित करने का भी प्रयास करता है ।
4 बच्चा इस अवस्था में विचारों को संगठित करना और वगीकृत करना सीख जाता है ।
5 बच्चे प्रतीकों का अर्थ भी समझना शुरू कर देते हैं ।
6 यह अवस्था 12 वर्ष से वयस्क होने तक चलती है ।
7 यह अवस्था संज्ञानात्मक विकास की आन्तमि अवस्था होती है ।
8 आयु बढऩे के साथ साथ बच्चों के अनुभव बढऩे से उनमें समस्या के समाधान की क्षमता भी विकसित होती हैं।
9 उनके चिन्तन में क्रमबद्धता आने लगती है ।
10 इस अवस्था में बच्चे का मस्तिष्क परिपक्व होने लगता है ।

पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत की शिक्षा में उपयोगिता ( Educational Implication of Piaget’s Cognitive Development )
1 पियाजे ने आने सिद्धांत का प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में करते हुए अनुकरण व खेल की क्रिया को महत्व दिया है । शिक्षकों को अनुकरण व खेल विधि से शिक्षण कार्य करना चाहिए । पियाजे कहते हैं कि जो बच्चे सीखने में धीमे होते हैं उन्हें दण्ड नहीं देना चाहिए ।
2 पियाजे के सिद्धांत के अनुसार आभिप्रेरणा और बालक दोनों ही अधिगम व विकास के लिए आवश्यक है । इन दोनों को शिक्षा में प्रयोग करना उचित होगा ।
3 बच्चों को अपने आप करके सीखने का अवसर हमे प्रदान करना चाहिए ।
4. 12 वर्ष की अवस्था के बच्चों को समस्या समाधान विधि से पढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि 10 -12 वर्ष की आयु तक आते – आते बच्चों में यह क्षमता विकसित होने लगती है ।
5 शिक्षकों व अन्य व्यक्तियों को बच्चों की बुद्धि का मापन उसकी व्यवहारिक क्रियाओ के आयोग के आधार पर करना चाहिए ।
6 बच्चा स्वयं और पर्यावरण से अंत: क्रिया द्वारा सीखता है । अत: हमें ( शिक्षको, माता-पिता ) बच्चे के लिए प्रेरणादायक माहौल का निर्माण कसना चाहिए ।
7 इस सिद्धांत के आधार पर शिक्षक एवं अभिभावक बच्चों की र्तकशकित व विचारशक्ति को पहचान सकते हैं

Monday, September 16, 2019

Ctet and uptet special question part -1

प्रश्‍न 1 – बालको का भाषायी विकास का क्रम क्‍या है।

उत्‍तर – बालको  के  भाषायी विकास का क्रम -

1. रोना ( रूदन , क्रदन )

2. बबलाना

3. हावभाव



प्रश्‍न 2 – बालक सबसे पहले क्‍या बोलता है।

उत्‍तर – व्‍यंजन

वह सबसे पहले मॉं शब्‍द बोलता है।



प्रश्‍न 3 – बालक सबसे पहले किसकी  भाषा  को  पहचानता  है। 

उत्‍तर – बालक सबसे पहले अपनी मॉं की आवाज ( भाषा ) को पहचानता है।

( इसे ही मात्रभाषा कहते है। )

  

प्रश्‍न 4 – बालक किस उम्र में वाक्‍यो द्वारा अपनी बात को कह पाता है।

उत्‍तर – 5 वर्ष की उम्र में ।



प्रश्‍न 5 – बच्‍चे को सबसे पहले भाषा का ज्ञान कहॉ से होता है।

उत्‍तर – अपने परिवार से  ।



प्रश्‍न 6 – 6वी कक्षा में पढ़ने  वाले बालक का शब्‍द  भंण्‍डार लगभग  कितना  होता  है। 

उत्‍तर – 50 हजार शब्‍दों तक ।



प्रश्‍न 7 – 10 वी कक्षा में पढने वाले बालक का शब्‍दा भंण्‍डार लगभग कितना होता है।

उत्‍तर – 80 हजार शब्‍दों तक ।



प्रश्‍न 8 – लडका एवं लडकियों में से किसका शब्‍दा भंण्‍डार अधिक होता है।

उत्‍तर – लडकियों का शब्‍द भंण्‍डार अधिक होता है।



प्रश्‍न 9 – भाषा को सीखने के साधन कौन – कौन से है।

उत्‍तर – भाषा को सीखने के साधन निम्‍न है।

1. अनुकरण द्वारा ( दोहराकर )

2. खेल – खेल विधि द्वारा

3. कहानी सुनकर

4. वार्तालाप द्वारा

5. प्रश्‍नोत्‍तर विधि से



प्रश्‍न 10 – लडकियॉ संकेतो द्वारा बात करना किस उम्र तक सीख जाती है।

उत्‍तर – 6 वर्ष की उम्र तक ।



प्रश्‍न 11 – भाषा के विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन – कौन से है।  

उत्‍तर – भाषा के विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्‍न है ।

1. लिंग

2. बुद्धि

3. स्‍वास्‍थ्‍य

4. जनसंचार का माध्‍यम

5. सम समूह का प्रभाव

6. सामाजिक आर्थिक स्थिती

7. पारिवारिक सम्‍बन्‍ध

8. विद्यालय

9. आसपडोस के वातावरण का प्रभाव



प्रश्‍न 12 – मनुष्‍य और पशु  में मुख्‍य अन्‍तर क्‍या है। 

उत्‍तर – बुद्धि का ।



प्रश्‍न 13 – बुद्धि को सबसे पहले परिभाषित किसने किया था।

उत्‍तर – बुद्धि को सबसे पहले परिभाषित  यूनान के दार्शनिकों ने किया ।



प्रश्‍न 14 – आधुनिक काल में बुद्धि को सबसे पहले किसने समझाया।  

उत्‍तर – अल्‍फ्रेड बिने ने 1904 में बताया ।



प्रश्‍न 15 – मानसिक आयु के माध्‍यम से बुद्धि को परिभाषित किसने किया।

उत्‍तर – अल्‍फ्रेड बिने ने ।

इन्‍होनें बताया कि बुद्धि दो प्रकार की हाती है।  

1. मानसिक आयु बुद्धि

2. वास्‍तविक आयु बुद्धि



प्रश्‍न 16 – अल्‍फ्रेड बिने किस देश के निवासी थे ।  

उत्‍तर – फ्रांस के



प्रश्‍न 17 – अल्‍फ्रेड बिने किस बिषय के प्रोफेसर थे।

उत्‍तर – मनोविज्ञान के ।



प्रश्‍न 18 – बुद्धि का एक कारक सिद्धान्‍त किसने दिया ।

उत्‍तर – अल्‍फ्रेड बिने ने ।

सहयोगी -  

1. स्‍टर्न

2. टरमन

3. साइमन



प्रश्‍न 19 – बुद्धि के दो कारक सिद्धान्‍त किसने दिया।  

उत्‍तर – स्‍पीयर मैन ने ।



प्रश्‍न 20 – बुद्धि के दो कारक सिद्धान्‍त कौन – कौन से है।

उत्‍तर – बुद्धि के दो कारक सिद्धान्‍त

1. G कारक सिद्धान्‍त

2. S कारक सिद्धान्‍त



प्रश्‍न 21 – बुद्धि का समूह कारक सिद्धान्‍त किसने दिया।

उत्‍तर – थस्‍टर्न  ने

इनके अनुसार बुद्धि के 7 कारक है।



प्रश्‍न 22 – बुद्धि का बहु कारक सिद्धान्‍त किसने दिया ।

उत्‍तर – थार्नडाइक ने



प्रश्‍न 23 – बुद्धि का बहु बुद्धि सिद्धान्‍त किसने दिया।

उत्‍तर – गार्डनर ने ।



प्रश्‍न 24 – बुद्धि का तरल व ठोस सिद्धान्‍त किसने दिया ।

उत्‍तर – R.B. कैटल ने ।



प्रश्‍न 25 – बुद्धि का प्रतिदर्श नमूना (सैम्‍पल) सिद्धान्‍त किसने दिया ।  

उत्‍तर – थामसन ने ।

One linear question for ctet and tet part-1

प्रश्‍न 1- शरीर मे सबसे लम्बी हड्डी का नाम क्या है। 
उत्‍तर - फीमर जो जॉग मे होती है। 


प्रश्‍न 2- शरीर मे सबसे छोटी हड्डी का नाम क्या है। 
उत्‍तर - स्टेपीज जो कान मे होती है । 


प्रश्‍न 3- शरीर मे सबसे मजबूत हड्डी का नाम क्या है। 
उत्‍तर - मण्डीवल जो जबडे मे होती है। 


प्रश्‍न 4- जन्म के समय नवजात शिशु की त्वचा का रंग कैसा होता है। 
उत्‍तर - हल्काम गुलाबी
नोट - 15 दिन के बाद त्वचा स्थाई रंग को प्राप्त कर लेती है। 


प्रश्‍न 5- नवजात शिशु कितने घण्टे सोता है। 
उत्‍तर - 18 से 20 घण्टे किन्तु् वह हर 2 घंण्टे मे जागकर अपनी मासपेसियो को घुमाता है। 


प्रश्‍न 6- बालक का विकास 6 बर्ष तक लगभग कितने प्रतिशत हो जाता है। 
उत्‍तर - 90 प्रतिशत ! 


प्रश्‍न 7- बालक का विकास 10 वर्ष तक लगभग कितने प्रतिशत हो जाता है। 
उत्‍तर - 95 प्रतिशत ! 


प्रश्‍न 8- बाल्य अवस्था में बालक की हड्डियॉ कितनी होती है। 
उत्‍तर - बाल्य अवस्था में बालक की हड्डियों की संख्या 270 से 350 तक हो जाती है। 


प्रश्‍न 9- नि:शुल्क एवं बाल शिक्षा का अधिकार एवं अधिनियम 2009 का विस्तार किस राज्य मे नही हुआ । 
उत्‍तर - जम्बू कश्मी‍र ! 


प्रश्‍न 10- शिक्षा का अधिकार 2009 के तहत निजी विद्यालय को कितने प्रतिशत सीट आरक्षित करना अनिवार्य होगा । 
उत्‍तर - 25 प्रतिशत ! 

प्रश्‍न 11- 25 से कम बुद्धि वाला बालक क्या कहलाता है। 
उत्‍तर - जड । 


प्रश्‍न 12- यौन, यदि समस्त जीवन का नही तो किशोरवस्था का अवश्य ही मूल तत्व है। यह किसने कहा। 
उत्‍तर - रॉस ने । 


प्रश्‍न 13- कुशाग्रबुद्धि अथवा प्रतिभावन बालक वह है जो निरन्तर किसी भी उचित कार्यक्षेत्र में अपनी अद्भुत कार्यकुशलता अथवा प्रवीणता का परिचय देता है। यह कथन किसका है। 
उत्‍तर - हैविंग्हर्स्ट । 


प्रश्‍न 14- पिछडा बालक वह है जो अपने अध्ययन के मध्यकाल में अपनी कक्षा का कार्य, जो उसकी आयु के अनुसार एक कक्षा नीचे का है करने मे असमर्थ रहता है यह किसने कहा । 
उत्‍तर - सिरिल बर्ट ने । 


प्रश्‍न 15- समस्यात्मतक बालक उन बालकों के लिये प्रयोग किया जाता है जिनका व्यवहार अथवा व्‍यक्तित्व‍ किसी बात मे गम्भीर रूप से असमान्य होता है। यह कथन किस मनोवैज्ञानिक का है। 
उत्‍तर - वेलेन्टाइन । 


प्रश्‍न 16- वह बालक जो समाज द्वारा स्वीकृत आचरण का पालन नही करता अपराधी कहलाता है यह किसने कहा। 
उत्‍तर - हीली ने । 


प्रश्‍न 17- बुद्धि के किस सिद्धान्त को बालू का ढेर कहा जाता है। 
उत्‍तर - बहुतत्व सिद्धान्त को । 


प्रश्‍न 18- व्यक्ति के चेहरे को देखकर उसकी बुद्धि का पता लगाया जा सकता है। यह कथन किसका है। 
उत्‍तर - लेवेटर का । 


प्रश्‍न 19- वे शिक्षार्थी जो संवृद्ध ज्ञान और शै‍क्षणिक दक्षता को । हार्दिक इच्छा प्रदर्शित करते है । उनके पास होता है। 
उत्‍तर - निष्पादन उपागम अभिविन्यास । 


प्रश्‍न 20- प्रतिभाशाली बालक वह है जो अपने उत्पा‍दन की मात्रा दर तथा गुणवत्ता् में विशिष्ट होता है। यह कथन दिया गया है। 
उत्‍तर - टर्मन एवं ओडन द्वारा । 


प्रश्‍न 21- 12 वर्ष तक के बालक के मतिष्क का भार कितना होता है । 
उत्‍तर - लगभग 1260 ग्राम जबकि एक स्वास्‍थ्‍य मनुष्य के मतिष्क का भार 1400 ग्राम होता है। 


प्रश्‍न 22- मनुष्य के शरीर में कितनी हड्डियॉ होती है। 
उत्‍तर - 206 हड्डियॉ होती है। जबकि बालक के जन्म के समय बालक में 270 हड्डियॉ होती है एवं बाल्य अवस्था में बालक ही हड्डियॉ 350 होती है। 


प्रश्‍न 23- बालक के विकास की दशा कैसी होती है। 
उत्‍तर - सिर से पैर की ओर । ( इसे केन्द्रा से बाहर की ओर ) और ( सामान्य से विशिष्टा की ओर ) भी कहते है। 


प्रश्‍न 24- विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान के जनक कौन है। 
उत्‍तर - सिंगमडफ्रायड । 


प्रश्‍न 25- तूफान की अवस्था किसे कहा जाता है। 
उत्‍तर - किशोर अवस्था् को । 


प्रश्‍न 26- किशोर अवस्था् को तूफान अवस्था किसने कहां । 
उत्‍तर - स्टेनले हाल । 


प्रश्‍न 27- नैतिक विकास का सिद्धान्त किसने दिया। 
उत्‍तर - कोहलवर्ग ने । 


प्रश्‍न 28- मूल प्रवृत्ति का सिद्धान्त किसने दिया। 
उत्‍तर - मैक्डूनल ( 14 मूल प्रवृतियां बताई ) । 


प्रश्‍न 29- संवेग क्या् है 
उत्‍तर - मन की उत्तेजित दशा को संवेग कहते है
जैसे – क्रोध , खुशी 


प्रश्‍न 30- व्यक्तित्व का स्व: सिद्धान्त किसने दिया। 
उत्‍तर - कार्लरोजर ने ! 


प्रश्‍न 31- वह स्तर जिसमें बच्चा् किसी वस्तु एवं घटना के बारे में तार्किक रूप से सोचना शुरू करता है उसे कौन सी अवस्था कहा जाता है । 
उत्‍तर - मूर्त क्रियात्मक अवस्था । 


प्रश्‍न 32- सृजनात्मकता मुख्य रूप से किस से सम्बन्धित है। 
उत्‍तर - अपसारी चिन्त‍न से । 


प्रश्‍न 33- चिन्तन अनिवार्य रूप से क्या है। 
उत्‍तर - संज्ञानात्मक गतिविधि । 


प्रश्‍न 34- किसी बालक में चिन्तन की योग्यता उसके सफल जीवन का मूल आधार है। यह कथन किसका है। 
उत्‍तर - क्रो और क्रो का । 


प्रश्‍न 35- चिन्तन की दृष्टि से किसी बच्चे में सर्वश्रेष्ठ चिन्तन है। तो उसे क्या कहेगे । 
उत्‍तर - तार्किक चिन्तन । 


प्रश्‍न 36- पियाजे के अनुसार किसी बालक में तार्किकता का अभाव किस आयु तक होता है। 
उत्‍तर - सात वर्ष तक । 


प्रश्‍न 37- किसी बच्चे के चिन्तन में आयु के बढने के साथ – साथ किसकी प्रधानता बढती है। 
उत्‍तर - तर्क की । 


प्रश्‍न 38- जन्म के बाद किसी बालक में चिन्तन का विकास कब प्रारम्भ होता है। 
उत्‍तर - दो वर्ष की आयु के बाद । 


प्रश्‍न 39- किसी छात्र का बौद्धिक विकास शारीरिक विकास तथा संवेगात्मक विकास उसकी विकास की प्रक्रिया का कौन सा कारक है। 
उत्‍तर - आन्‍तरिक कारक । 


प्रश्‍न 40- माता – पिता से सन्तनों को प्राप्त होने वाले गुणों को कहते है। 
उत्‍तर - वंशानुक्रम । 


प्रश्‍न 41- अधिगम की प्रक्रिया पूर्ण कब होती है। 
उत्‍तर - जब व्‍यवहार में स्‍थायी परिवर्तन हो जाए। 


प्रश्‍न 42- मनोविज्ञान का जनक किसे कहा जाता है। 
उत्‍तर - सिंग्‍मण्‍ड फ्रायड को 


प्रश्‍न 43- अंधों की लिपि के जनक किसे कहा जाता है। 
उत्‍तर - लुई ब्रेल 


प्रश्‍न 44- अंधों के लिए लुई ब्रेल ने कौनसी लिपि का प्रतिपादन किया। 
उत्‍तर - ब्रेल लिपि 


प्रश्‍न 45- नर्सरी पद्धति के जनक किसे कहा जात है। 
उत्‍तर - मारिया मांन्‍टेसरी 


प्रश्‍न 46- L.K.G.व U.K.G. पद्धति के जनक है। 
उत्‍तर - फ्रोबेल 


प्रश्‍न 47- जीनपियाजे कहा के मनोवैज्ञानिक थे। 
उत्‍तर - स्विटजरलैण्‍ड के 


प्रश्‍न 48- जीन पियाजे किस विचारधारा के समर्थक थे। 
उत्‍तर - संज्ञानात्‍मक 


प्रश्‍न 49- स्‍कीमा सिद्धांत का जनक किसे माना गया है। 
उत्‍तर - जीन पियाजे 


प्रश्‍न 50- जीनपियाजे ने अपना प्रयोग किस पर किया था। 
उत्‍तर - दो पुत्रियों एवं पुत्र पर 

Sunday, September 15, 2019

प्याज़े का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त

पियाजे द्वारा प्रतिपादित संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त(theory of cognitive development) मानव बुद्धि की प्रकृति एवं उसके विकास से सम्बन्धित एक विशद सिद्धान्त है। प्याज़े का मानना था कि व्यक्ति के विकास में उसका बचपन एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पियाजे का सिद्धान्त, विकासी अवस्था सिद्धान्त (developmental stage theory) कहलाता है। यह सिद्धान्त ज्ञान की प्रकृति के बारे में है और बतलाता है कि मानव कैसे ज्ञान क्रमशः इसका अर्जन करता है, कैसे इसे एक-एक कर जोड़ता है और कैसे इसका उपयोग करता है।
व्यक्ति वातावरण के तत्वों का प्रत्यक्षीकरण करता है; अर्थात् पहचानता है, प्रतीकों की सहायता से उन्हें समझने की कोशिश करता है तथा संबंधित वस्तु/व्यक्ति के संदर्भ में अमूर्त चिन्तन करता है। उक्त सभी प्रक्रियाओं से मिलकर उसके भीतर एक ज्ञान भण्डार या संज्ञानात्मक संरचना उसके व्यवहार को निर्देशित करती हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति वातावरण में उपस्थित किसी भी प्रकार के उद्दीपकों (स्टिमुलैंट्स) से प्रभावित होकर सीधे प्रतिक्रिया नहीं करता है, पहले वह उन उद्दीपकों को पहचानता है, ग्रहण करता है, उसकी व्याख्या करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संज्ञात्माक संरचना वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों और व्यवहार के बीच मध्यस्थता का कार्य करता हैं।
ज्याँ प्याजे ने व्यापक स्तर पर संज्ञानात्मक विकास का अध्ययन किया। पियाजे के अनुसार, बालक द्वारा अर्जित ज्ञान के भण्डार का स्वरूप विकास की प्रत्येक अवस्था में बदलता हैं और परिमार्जित होता रहता है। पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त को विकासात्मक सिद्धान्त भी कहा जाता है। चूंकि उसके अनुसार, बालक के भीतर संज्ञान का विकास अनेक अवस्थाओ से होकर गुजरता है, इसलिये इसे अवस्था सिद्धान्त (STAGE THEORY ) भी कहा जाता है।
पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार अवस्थाओं में विभाजित किया है-
  • (१) संवेदिक पेशीय अवस्था (Sensory Motor) : जन्म के 2 वर्ष
  • (२) पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Pre-operational) : 2-7 वर्ष
  • (३) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational) : 7 से12 वर्ष
  • (४) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational) : 12से 18वर्ष

संवेदी पेशीय अवस्थासंपादित करें

इस अवस्था में बालक केवल अपनी संवेदनाओं और शारीरिक क्रियाओं की सहायता से ज्ञान अर्जित करता है। बच्चा जब जन्म लेता है तो उसके भीतर सहज क्रियाएँ (Reflexes) होती हैं। इन सहज क्रियाओं और ज्ञानन्द्रियों की सहायता से बच्चा वस्तुओं ध्वनिओं, स्पर्श, रसो एवं गंधों का अनुभव प्राप्त करता है और इन अनुभवों की पुनरावृत्ति के कारण वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों की कुछ विशेषताओं से परिचित होता है।
¤ उन्होने इस अवस्था को छः उपवस्था मे बाटा है ~
1- सहज क्रियाओ की अवस्था (जन्म से 30 दिन तक)
2- प्रमुख वृत्तीय अनुक्रियाओ की अवस्था ( 1 माह से 4 माह)
3- गौण वृत्तीय अनुक्रियाओ की अवस्था ( 4 माह से 8 माह)
4- गौण स्किमेटा की समन्वय की अवस्था ( 8 माह से 12 माह )
5- तृतीय वृत्तीय अनुक्रियाओ की अवस्था ( 12 माह से 18 माह )
6- मानसिक सहयोग द्वारा नये साधनों की खोज की अवस्था ( 18 माह से 24 माह )

पूर्व-संक्रियात्मक अवस्थासंपादित करें

इस अवस्था में बालक स्वकेन्द्रित व स्वार्थी न होकर दूसरों के सम्पर्क से ज्ञान अर्जित करता है। अब वह खेल, अनुकरण, चित्र निर्माण तथा भाषा के माध्यम से वस्तुओं के संबंध में अपनी जानकारी अधिकाधिक बढ़ाता है। धीरे-धीरे वह प्रतीकों को ग्रहण करता है किन्तु किसी भी कार्य का क्या संबंध होता है तथा तार्किक चिन्तन के प्रति अनभिज्ञ रहते हैं। इस अवस्था में अनुक्रमणशीलता पायी जाती है। इस अवस्था मे बालक के अनुकरणो मे परिपक्वता आ जाती है इस अवस्था मे प्रकट होने वाले लक्षण दो प्रकार के होने से इसे दो भागों में बांटा गया है। 1. पूर्व प्रत्यात्मक काल: (2-4 वर्ष) 2. अंतः प्रज्ञककाल: / अन्तर्दर्शि अवधि (4-7 वर्ष)

मूर्त संक्रियात्मक अवस्थासंपादित करें

इस अवस्था में बालक विद्यालय जाना प्रांरभ कर लेता है एवं वस्तुओं एव घटनाओं के बीच समानता, भिन्नता समझने की क्षमता उत्पन हो जाती है इस अवस्था में बालकों में संख्या बोध, वर्गीकरण, क्रमानुसार व्यवस्था किसी भी वस्तु ,व्यक्ति के मध्य पारस्परिक संबंध का ज्ञान हो जाता है। वह तर्क कर सकता है। संक्षेप में वह अपने चारों ओर के पर्यावरण के साथ अनुकूल करने के लिये अनेक नियम को सीख लेता है।

औपचारिक या अमूर्त संक्रियात्मक अवस्थासंपादित करें

यह अवस्था 12 वर्ष के बाद की है इस अवस्था की विशेषता निम्न है :-
  • तार्किक चिंतन की क्षमता का विकास
  • समस्या समाधान की क्षमता का विकास
  • वास्तविक-आवास्तविक में अन्तर समझने की क्षमता का विकास
  • वास्तविक अनुभवों को काल्पनिक परिस्थितियों में ढालने की क्षमता का विकास
  • परिकल्पना विकसित करने की क्षमता का विकास
  • विसंगंतियाँ के संबंध में विचार करने की क्षमता का विकास

जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की प्रकिया में मुख्यतः दो बातों को महत्वपूर्ण माना है। पहला संगठन दूसरा अनुकूलन। संगठन से तात्पर्य बुद्धि में विभिन्न क्रियाएँ जैसे प्रत्यक्षीकरण, स्मृति , चिंतन एवं तर्क सभी संगठित होकर करती है। उदा. एक बालक वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों के संबंध में उसकी विभिन्न मानसिक क्रियाएँ पृथक पृथक कार्य नहीं करती है बल्कि एक साथ संगठित होकर कार्य करती है। वातावरण के साथ समायोजन करना संगठन का ही परिणाम है। संगठन व्यक्ति एवं वातावरण के संबंध को आंतरिक रूप से प्रभावित करता है। अनुकूलन बाह्य रूप से प्रभावित करता है।

डॉ. जीन पियाजे के सम्पूर्ण अधिगम से संबंधित सिद्धांत

डॉ. जीन पियाजे ( 1896-1980 ) स्विस मनोवैज्ञानिक थे। वे मूल रूप से प्राणी शास्त्री थे, लेकिन उन्होंने मनोविज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण क...